19 नवंबर , विशाल इंडिया
नोएडा : देश की पहली ,महिला प्रधानमंत्री व आयरन लेडी के नाम से मशहूर इन्दिरा गांधी की आज जयंती है। अगर वह आज जिंदा होतीं तो 101वां जन्मदिन मना रही होती। उनका जन्म 19 नवंबर 1917 को इलाहाबाद में हुआ था।
भारतीय राजनीति के इतिहास में इंदिरा गांधी को विशेष रूप से याद रखा जाता है। इंदिरा गांधी ही थीं जिनके बुलंद हौसलों के आगे पूरी दुनिया ने भारत के आगे घुटने टेके थे।
इंदिरा गांधी को तीन कामों के लिए देश सदैव याद करता रहेगा। पहला बैंकों का राष्ट्रीयकरण, दूसरा राजा-रजवाड़ों के प्रिवीपर्स की समाप्ति और तीसरा पाकिस्तान को युद्ध में पराजित कर बांग्लादेश का उदय।
इसके अलावा भी उन्हें देश में अन्य महत्वपूर्ण कार्यों के लिए याद किया जाता रहेगा । आज आपको इन्दिरा गांधी से जुड़ी एक दिलचस्प बात बताते हैं आखिर ऐसा क्या हुआ था कि इन्दिरा गांधी ने अमेरिकी राष्ट्रपति के बदतमीजी का कुछ इस तरह से दिया करारा जवाब ।
बांग्लादेश के खिलाफ वर्ष 1971 में युद्ध के दौरान उन्होंने दुनिया की दो महाशक्तियों को जिस तरह आमने सामने खड़ा करके सैन्य हस्तक्षेप कर बांग्लादेश को आजादी दिलाई, वैसा शायद ही कोई दूसरा प्रधानमंत्री कर पाता। वर्ष 1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान में दमन काफी बढ़ गया. असर भारत और यहां के लोगों पर पड़ने लगा, तब कार्रवाई अवश्यंभावी हो गई थी।
पाकिस्तानी शासक जनरल याह्या खान अमेरिका की आंख के तारे थे। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन उन्हें पसंद करते थे। वजह कई थीं, एक ये भी कि अमेरिका एशिया में चीन से पींगें बढ़ाने की कोशिश कर रहा था, उसमें याह्या बीच की कड़ी बने हुए थे। वैसे सही बात ये भी है अमेरिकी प्रशासन, भारत और पाकिस्तान दोनों के बारे में कोई बहुत अच्छी राय नहीं रखता था। इंदिरा गांधी को लेकर नापसंदगी हद से ज्यादा थी। 1971 में जब ऐसा लगने लगा कि भारत पूर्वी पाकिस्तान में कोई सैन्य कार्रवाई करके पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बांट देगा, तभी इंदिरा गांधी नवंबर महीने में अमेरिका पहुंची थी।
मुलाकात से पहले की शाम राष्ट्रपति निक्सन और विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर की बातचीत में इंदिरा के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया गया। निक्सन ने उन्हें ओल्ड विच कहा तो किसिंजर ने भारतीयों को बास्टर्ड। अगले दिन की मुलाकात में इंदिरा को कड़ी चेतावनी दी जाने वाली थी। मुलाकात की शुरुआत ही गड़बड़ रही। निक्सन ने हावभाव से जैसी शुरुआत की उसका वैसा ही जवाब इंदिरा से मिला। इंदिरा ने पूरी मुलाकात में कुछ ऐसा ठंडा रुख अख्तियार कर लिया, मानो उन्हें निक्सन की कोई परवाह ही न हो । निक्सन ने चेतावनी दी, ”अगर भारत ने पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई की हिम्मत की तो नतीजे अच्छे नहीं होंगे,और भारत को पछताना होगा। ” किसी और देश के लिए ये चेतावनी पसीने-पसीने कर देने वाली होती लेकिन इंदिरा किसी और मिट्टी की ही बनी थीं। उन्होंने निक्सन के साथ वैसा ही बर्ताव किया जैसा कोई समान पद वाला करता है ।
इंदिरा न केवल गर्वीली थीं, बल्कि सम्मान से कोई समझौता नहीं करने वाली थीं। अमेरिका दौरे से पहले सितंबर में वह सोवियत संघ भी गई थीं भारत को सैन्य आपूर्ति के साथ मास्को के राजनीतिक समर्थन की सख्त जरूरत थी. जब वह पहुंची तो पहले दिन प्रधानमंत्री किशीगन से मुलाकात कराई गई। उन्होंने साफ जता दिया कि वह जो बात करने आईं हैं वह देश के असली राष्ट्रप्रमुख ब्रेझनेव से ही करेंगी। अगले दिन ब्रेझनेव से बातचीत हुई । वर्ष 1971 में इंदिरा ने अमेरिका और सोवियत संघ के लिए जैसे पांसे फेंके, वो बेहद नपी-तुली और समझदारी वाली विदेशनीति थी
खैर अमेरिका से लौटते हुए इंदिरा गांधी पक्का कर चुकी थीं कि अब करना क्या है । तीन दिन बाद ही दिसंबर के पहले हफ्ते में भारतीय फौज ने पूर्वी पाकिस्तान में कार्रवाई शुरू कर दी। पाकिस्तानी सेना के पैर उखड़ने लगे, खबर वाशिंगटन पहुंची तो निक्सन बौखला गए, उन्हें उम्मीद भी नहीं थी कि उनकी चेतावनी के बाद भी भारत ऐसा करेगा । कुंठित निक्सन ने चीन से संपर्क साधा कि क्या वह भारत के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है, चीन तैयार नहीं हुआ, क्योंकि उसे भी लगता था कि पूर्वी पाकिस्तान की स्वतंत्रता ही एकमात्र हल है । अब सीधे इंदिरा पर संघर्ष विराम का दबाव डाला गया । दो-टूक जवाब मिला-नहीं ऐसा नहीं हो सकता. अमेरिका ने अपने सातवें बेड़े को हिन्द महासागर में पहुंचने का आर्डर मिला. तो सोवियत संघ तुरंत सामने आकर खड़ा हो गया । भारत ने संघर्षविराम तो किया, लेकिन 17 दिसंबर को ढाका में भारतीय फौज के फ्लैग मार्च के बाद ।
ये ऐसा समय था जब भारतीय फौज चाहतीं तो पश्चिम में पाकिस्तानी सीमा के अंदर तक जाकर उसके इलाके को हड़प सकती थीं, लेकिन इंदिरा ने ऐसा नहीं किया । उन्होंने मास्को के जरिए वाशिंगटन को संदेश भिजवाया कि पाकिस्तानी सरजमीं को कब्जाने का उनका कोई इरादा नहीं है. उन्हें जो करना था, वो उन्होंने कर दिया ।
माना जाता है कि भारत ने सबसे पहले बांग्लादेश को एक देश के रूप में मान्यता दी लेकिन ये सही नहीं है बल्कि ये काम छह दिसंबर को भूटान ने सबसे पहले कर दिया था। भारत ऐसा करने वाला दूसरा देश था. बांग्लादेश बनने के एक महीने के अंदर ही अंदर संयुक्त राष्ट्र के ज्यादातर देशों ने बांग्लादेश को मान्यता दे दी । इस जीत और सैन्य अभियान ने यकायक इंदिरा और भारत की छवि पूरी दुनिया में बदलकर रख दी ।
निक्सन कभी इस घाव को भूल नहीं पाए. याह्या खान के हाथ से पाकिस्तान की सत्ता चली गई । उन्हें जुल्फिकार अली भुट्टो को सत्ता सौंपनी पड़ी । भुट्टों ने सत्ता में आते ही उनसे सारे अधिकार और पद छीनकर नजरबंद कर दिया ।
इंदिरा इस कदर दुनियाभर के नेताओं में लोकप्रिय थीं कि वर्ष 1977 में चुनाव हारने के बाद जब उन्होंने लंदन का दौरा किया तो दुनियाभर के तमाम नेताओं ने उनसे वहां मुलाकात की। और वैसा ही सम्मान दिया, जो एक राष्ट्रप्रमुख को मिलता है ।